कश्मकश
कश्मकश
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बगिया कुम्हलाने लगी,
जबसे तितलियों ने आना छोड़ा है,
रिश्तों की स्याही सूख गई,
मन का कागज़ कोरा कोरा है,
सुन्दर सपनों के ताने-बाने में
उलझा पड़ा कहीं आधा मन,
कहीं माज़ी रथ को खींच रहा
आधा मन का घोड़ा है,
अतीत की कहानियों में
अब भी छटपटाते हैं कुछ किरदार,
उनके बदरंग परिधानों से चुराकर
कुछ चटख रंग बटोरा है,
बेवक्त आकर टीसें उभारती
यादों की ठण्डी पुरवाइयां
बड़ी मुश्किल से अभी अभी
तो घावों का टांका जोड़ा है,
मुखौटों वाले भीड़ में होने लगी
एक बेचैन सी उजबुजाहट
एकांत के सुरीले तारों ने
जबसे आत्मा को झकझोरा है,
कालचक्र के पहिये पर नित
रंग बदलता है संसार
इंद्रधनुषी बंधन से मन को
बस मोह के धागों ने जोड़ा है