#कदम
#कदम
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चलते हुए कदमों में, चलते हुए कदम रह गए
ये गुजरती रही राहें, हम स्थिर होकर ठहर गए
मुस्कुराता पहर, धूप तो कभी, छाँव दिखाता
यहाँ वक़्त के हिस्सों से हम भागों में बट गए
बढ़कर मंजिल को पाने की एक सनक हुई
दिल से चलते रहे, तो कभी मन से थम गए
मालूम हो की राहगीर वहाँ हर राह से गुजरा
सब जानकर भी आज हम अनजान हो गए
राह के रोड़ों ने कब मंजिल आसान बनाई
करीब से देखा, तो मुसीबतों के घर हो गए
स्वयं में अपनी जगह यहाँ सभी अमूल्य रहे
"अक्षि" ने लिखा और आज पन्ने चार हो गए
चलते हुए कदमों में, चलते हुए कदम रह गए
ये गुजरती रही राहें, हम स्थिर होकर ठहर गए
