कारवां
कारवां
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निकला जो खुद की तलाश में,
कारवां सा बनता गया।
जहां तक दूर दूर भी ना था कोई पास,
आज उसे मैं पहचाना सा लग गया।
मंजिल के पीछे भागते भागते तन्हा सा हो गया,
मिली जब मंजिल तो अरमान सा हो गया।
हुई जब खोज खुद की,
और पीछे कारवां सा लग गया।
ठहरा हुआ था तपती धूप में किनारे की तरह,
मिला जब सागर को तब लहरो ने भी अपना बना लिया।
क्योंकि निकला था खुद की तलाश में,
और कारवां सा बन गया ।