जीवन जिसकी छाया
जीवन जिसकी छाया
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जीवन जिसकी छाया में बीता
क्यों तू उसको भूल गया
और उससे दूर गया
जिसने तूझे बनाया
चाक पर रख तूझे सजाया
कच्ची माटी था तू
तुझे पकाया
हाथ थाम चलना सिखाया
दुनिया की हर धूप से बचाया
झड़ने लगी अब उसकी शाखाएं
लगी राह पर आशाएं
बहुत कमाई धन दौलत
मिल जाए अब बूढ़ी आंखों को राहत
अंतिम घड़ी में देखने को तरसे
अब आंसू सूखे न बरसे
जीवन जिसकी छाया में बीता
अंत समय तू सुख कर देता।