जीवन और बारिश भाग - 2
जीवन और बारिश भाग - 2
आँखों पर हाथ रखे
वह देख
रहा था
टकटकी लगाए
आस है जिनके
रुकने की
बरसने से
गति तगड़ी
लिए मजदूर की
जो
कमर पर
लपेटे मैली सी
चादर
भूख मिटाने
के
यंत्र की भांति
सड़क किनारे
खड़े
अपनी
काग़ज की
फिरकियों के
रूप में
अपने सपनों
को
बारिश के पानी में
गलता देख
रहे
अधनगें
कपड़े पहने
उस
अधेड़ की
ठेले पर
आधे कच्चे
आधे पके
केले लिए बैठी
मक्खियां उड़ाती
उस बूढी
नानी की
जो पाल रही है
अपनी मृत
बच्ची के
बच्चों को
जिन्हे
छोड़ गया
उनका जल्लाद
बाप
जब वह
बेच ना पाया
बूढी नानी के
विरोध के चलते
अपनी मासूम
बेटियों को
किसी और जल्लाद
के हाथ
दारु से
अपना गला
तर करने
आस है इन
सबको
की
रुके बारिश
तो
शुरू हो काम
उस
ऊँचे भवन का
जिसके भरोसे
छोड़ आये है
ं
अपना गाँव
कई मजदूर
की
बारिश रुके तो
खुले उनके पेट
पर बंधी
वह चादर
रुके बारिश तो
रुके
गलना फिरकियों का
आएं बच्चे
ग्राहक
के रूप में
भगवान् बनकर
और
हो इंतजाम
बच्चों के
स्कूल के शुल्क का
हो आसरा
फिर जीने का
चार दिन
की अब बादल
बंद करे
गरजना
रुके पानी
तो अधपके
केले बिके
नानी के
घर के कोने
में दुबके
हाथ में
बर्तन थामे
छत को तांकते
बैठी होगी
नातीनें
की
खान से गिर रहा
है पानी
यह पता लगे
की
कहाँ से
नहीं टपक
रही है
छत
कब आएगी
नानी
की
इन्तजार है
पेट भरने
से पहले
डाल छत पर
तिरपाल
इस बार
ठेले पर बैठी
नानी
आँखों में
लिए पानी
मना रही है
ईश्वर को अपने
और मांग रही है
मन्नत बादलों से
की
अबके जैसे
तुम बरसे हो
वैसे तुम ना आना
फिर हमको ना सताना