जीने का हक मुझे भी है
जीने का हक मुझे भी है
दबकर जीना सीखा था,
अब उठने का हक मुझे भी है।
जो कैद करोगे पिंजड़े में,
तो उड़ने का हक मुझे भी है।
पढ़ी लिखी हूं तो क्या , हूं तो मैं लड़की ही
जॉब कर ली तो क्या , हूं तो मैं लड़की ही।
रात का अंधेरा है मेरे लिए खतरनाक,
मुझसे ही ऊंची नीची है खानदान की नाक।
नहीं भूली, ना समाज बदला है, ना ये लोग
बेटियां आज भी है बाप के कंधे का बोझ।
आज भी रात को बाहर निकलने से पहले हमें
सोचना पड़ता है,
बाप के चेहरे पर दिखती है खामोशी,
और मां से सौ बार पूछना पड़ता है।
बेटा जवान तो बाप का 'सहारा',।
बेटी जवान तो बाप 'बेचारा'।
लड़की ज्यादा पढ़ लिख ली तो अच्छा रिश्ता
कहां से आएगा?
लड़का जितना पढ़े, दहेज से उतना घर भर जाएगा।
कहीं कभी कोई लड़की छिड़ी तो दोषी लड़की ही होगी,
जरूर कपड़े 'तंग' होंगे या रात में अकेले निकली होगी।
उसके कपड़े नहीं तुम्हारी मानसिकता 'तंग' है,
अपने अधिकारों की खातिर लड़नी हमें अब जंग है,
आशाओं की किरण दिखी है, सवेरा होना बाकी है,
नई सुबह की एक किरण, अंधेरा चीरने को काफी है।
दहलीज भले ही ऊंची है,।
पर ठोकर की आह पुरानी है,।
घाव कई में सह गई,।
अब मरहम का हक मुझे भी है।