- हमारे एक कवि मित्र काफ़ी समय से - लोहे के चने - चबा रहे हैं - हमारे एक कवि मित्र काफ़ी समय से - लोहे के चने - चबा रहे हैं
आशिकी के तमाम किस्सों में, कोई नादान है पर कोई बहुत दाना है। आशिकी के तमाम किस्सों में, कोई नादान है पर कोई बहुत दाना है।