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Shivendra Bisht

Others

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Shivendra Bisht

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इंजीनियरिंग की पढ़ाई

इंजीनियरिंग की पढ़ाई

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इंजीनियरिंग की पढ़ाई,

जैसे चट्टानों पर चढ़ाई,

अपने पल्ले कुछ न आता,

क्लास में बैठ बस ऊँघता ही जाता।


वही कम्प्यूटर जिस पर,

घर में देखते हैं फिल्म,

खेलते गेम,न जाने क्यों,

प्रैक्टिकल में मारता है करेंट।


यूँ तो रखता हूँ शौक लिखने का,

और लिखी भी हैं दस-बारह,

छोटी-मोटी कवितायेँ,

लेकिन 'जनरल' लिखने में मरती है नानी,

और इन्हें सबमिट करने में आते हैं पसीने,

छूट जाते हैं छक्के।


साल भर टीचर की.

करनी पड़ती है चापलूसी,

तब जाकर कुछ बात है बनती,

तारीखों की तरह बदलते हैं हौड।


प्रिंसिपल तो हैं ही ईद के चाँद,

जिस दिन दिख गए,

समझ लो वह दिन है ख़ास।


पूरी पी. एल. बीत जाती है,

सुस्ती में या फिर मटरगश्ती में,

इम्तिहान से दो दिन पहले,

ब-मुश्किल खुल पाती हैं किताबें।


हर काला अक्षर भैंस से भी,

बड़ा दिखाई देने लगता है,

इसलिए किताबें बंद कर दिल,

रोने को करता है,

जी कहीं भाग जाने को।


आंखिरकार सोचता हूँ,

रेगुलर रहा होता सेमेस्टर भर,

न किये होते लेक्चर बंक।


तो डेट-शीट मिलने पर

फर्रे बनाने का ख्याल

न लगता एक कारगर औजार की तरह।


जिसको बांध कर पोशीदा तरीके से,

निकला जाता है चट्टान की ओर।


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