इबादत
इबादत
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कुदरत के कहर से डर के कुछ दिन
जो गुजारे घर पे रह इबादत की,
ख़ुदा से चार दीवारों पे ही रह के
गुज़ारिश की,
कल जब दौर फिर से आयेगा
तू फिर से सब कुछ भूल जाएगा..
गर अब भी ना संभल सका तू ए इंसान
तू खुद को इस बार ख़ुदा से भी ना
इबादत कर पाएगा ....
राख हो गए बिना किसी रस्म रिवाज़ों के
उस पल का खौफ रखना,
कुछ अनचाहे पलों को तू अभी भी
खुद से दूर रखना,
संभल जाना खुद तू अपने अरमानों
और अपने अपनों को तू याद रखना,
कुछ ना हो सके तो सोच समझ के
खुद को अब भी तू चार दीवारों में
क़ैद रखना!!
