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Manmeet Singh

Others

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Manmeet Singh

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हसरत

हसरत

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सेहरा सेहरा बस्ती बस्ती, भटका जिसकी ख़ातिर मैं

पा कर भी उसे ना जाने क्यों, दिल बेकल सा ये रहता है


अरमा था तो बस इतना, की कोई सर पे प्यार से हाथ रखे

अब सिर पे उठाये फिरते हैं सब, पर दिल बेकल सा ये रहता है


ख़्वाहिश थी की जुगनू बन कर, कुछ अंधियारे को पी जाऊँ

अब चाँद की मानिंद फिरता हूँ, पर दिल बेकल सा ये रहता है



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