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Abhishek Singh

Others

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Abhishek Singh

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हर घड़ी मानने-मनाने में

हर घड़ी मानने-मनाने में

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हर घड़ी मानने-मनाने में

एक मज़ा सा है रूठ जाने में


इश्क़ में रूह को सताओ मत

थकन होती है जिस्म-खाने में 


एक पल में हुए थे हम उसके

एक सदी लग गयी भुलाने में


मुझसे पहले हीं पहुँच जाता है

ख़्वाब तेरा मेरे सिरहाने में


चाँदनी धूप को तरसती है

आसमाँ के किसी ठिकाने में


मुझसे मुझको निकाल दो अब तो

जी उफनता है क़ैद-खाने में ।



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