हंस चला अपनी राह अकेली
हंस चला अपनी राह अकेली
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दीपक बाती में चिंगारी
लो फूटी बीती रात अंधेरी
पलक खुली
देखी दुनिया तेरी मेरी
जग मकड़ी जाला उलझ घनेरी
माया मीत लगी
सत सुद बिसरी
करता अबकी अबकी
बीती उम्र पलकी
दीपक की माटी
तेल बचा ना बाती
ज्यों आया चलने की तैयारी
पीटूँ छाती
माया काम न आती
झूठी तेरी झूठी मेरी
दो पल की है जिंदगानी
दो मीठे बोल की यारी
बस यही है अमर निशानी
होश रहे तो भरो खजाना वरना तो लुट जानी
सूरज दिखे जावे भोर सुहानी
दिन बीत्यो पण तप्त रही
आशा तृष्णा नाच रही
मदमाती सांझ की लाली
छूट गया जग संगी रहे ना साथी
हंस चला अपनी राह अकेली।।