ग़ज़ल
ग़ज़ल
खीर चम्मच से खाई जाती है, हाथों से नहीं,
मोहब्बत दिल से निभाई जाती है, बातों से नहीं।
जो सच्चे हों, उन्हें सौदागरी आती नहीं,
इश्क़ की राहें किसी बाजार में जाती नहीं।
धड़कनों में बसी हो जो तस्वीर किसी की,
वो मिटती नहीं, चाहे सदियाँ भी बीतती नहीं।
हर वादा यहाँ सिर्फ लफ्ज़ों में नहीं होता,
कुछ अहसास ऐसे हैं जो लिखे जाते नहीं।
रात भर जागकर जिसने दुआएँ दी हों,
उनकी चाहत किसी कीमत पर बिकती नहीं।
बेवफ़ा इस दौर में मिलते हैं हर गली,
पर वफ़ादारी हर मोड़ पर मिलती नहीं।
इश्क़ कहता है कभी तौल मत इसे,
ये तराजू की चीज़ नहीं, कोई सौदा नहीं।
दर्द जब हद से गुज़र जाए,
तो अश्कों की ज़रूरत भी पड़ती नहीं।
जो अपने थे, वो ही पराए हो गए,
अब ये तक़दीर का खेल समझ में आता नहीं।
दिल लगाने की गलती न करना कभी,
यहाँ दिल लगे तो सँभलता भी नहीं।
हर ज़ख़्म की दवा होती है,
पर इश्क़ का ज़ख़्म कभी भरता नहीं।
मंज़िल उसी को मिलती है जो चलता रहे,
जो बैठ जाए, उसे रास्ता मिलता नहीं।
मोहब्बत तो जज़्बा है, इसे समझने दो,
यह किताबों की कहानी नहीं, कोई अफ़साना नहीं।
