यादें बचपन की
यादें बचपन की
ख़ुशबू अब भी आती है, उन गलियों की,
जहाँ बचपन ने सजाई थीं रंगीन गलियों की।
मिट्टी से खेलते थे, हँसी बेपरवाह थी,
वो बेफिक्री के लम्हे, कहाँ अब पनाह थी।
खिलौनों से दुनिया थी अपनी बसी,
खुशियों में थी जैसे जादू बसी।
न माँगते थे कुछ, बस खेलना आता था,
रूठते थे जो, तो मनाना आता था।
पेड़ की शाखों पे झूले लगाते थे,
कभी गिरते, कभी फिर भी मुस्कुराते थे।
बारिश की बूँदों में कागज़ की कश्ती,
बचपन की वो दुनिया थी कितनी मस्त-मस्ती।
न धड़कन की चिंता, न कोई परेशानी,
हर दिन जैसे कोई नई थी कहानी।
वो स्कूल की घंटी, वो बस्ता पुराना,
मासूम सा चेहरा, दिल बिल्कुल दीवाना।
स्लेट और चॉक से लिखी थीं तक़दीरें,
बेमतलब की बातें, प्यारी सी तक़रीरें।
माँ की ममता, वो प्यार भरी डाँट,
हर गलती पर मिलती थी मीठी सी घात।
दादी की कहानियाँ, वो चाँद की बातें,
रातों में तारे गिनते थे हम साथ में।
गिल्ली-डंडा, पिट्ठू, वो लंबी दौड़,
अब भी हैं यादें, बस दिल में कहीं जोड़।
रंगीन टॉफियाँ और मेले की शान,
झूले पे बैठकर उड़ते थे अरमान।
खेतों में भागना, तितली पकड़ना,
बिना मतलब के भी कितना मचलना।
न कोई नफरत थी, न कोई बैर,
दिलों में थी बस दोस्ती की सैर।
वो चॉकलेट के झगड़े, वो बाँटने का प्यार,
अब बड़े होकर रह गए हम बस बेकरार।
वो कागज़ के जहाज, वो मिट्टी के घर,
अब भी दिल करता है लौट जाए उधर।
जो पल बीते, वो लौट कर आते नहीं,
पर यादों में वो चेहरे मिटते नहीं।
कभी छू लूँ फिर से वो मासूम लम्हे,
जहाँ खुशियाँ थी और न थे ग़म के क़समे।
अब भी कभी दिल करता है जी भर के रो लूँ,
वो गलियाँ, वो बचपन, फिर से संजो लूँ।
यादें बचपन की, अब बस यादों में हैं,
पर दिल कहता है, वो दिन फिर से आएँ।
