गज़ब के अंदाज
गज़ब के अंदाज
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कोई कोढ़, कोई खुजली, कोई खाज निकले।
मेरे सारे के सारे दोस्त दगााबाज़ निकले।।
जो करता था मेरी तारीफ मेरे सामने।
पीठ पीछे उसके कैसे कैसेे अल्फाज़ निकले।।
कब तक झूठी हाँ में हाँ मिलाओगे उसके।
कभी तो उसके विरोध में भी आवाज़ निकले।।
सारे के सारे नौजवान इश्क के मरीज है।
कोई तो भगत सिंह जैसा अकड़बाज निकले।।
साँप निकले फिर लाठी पीटती पुलिस हमाारी।
जेब गर्म हो तो, कैसे कातिलों के राज़ निकलेे।।
झूठे डूबे रहे उसकी मोहब्बत में आज तक।
हमें पता ही नहीं चला वो कब नारााज निकलेे।।
कभी फटी टी-शर्ट में साइकिल चलाता था वो।
वजीर क्या बना, गज़ब उसके अंदाज निकले।।