घूंघट में छुपी नारी
घूंघट में छुपी नारी
1 min
358
न वो खुला आसमान था,
न वो हंसी की किलकारी थी,
बस घुंघट में छुपे सिमटी एक नारी थी,
अपने बापू के आंगन की क्यारी के बगीचे,
की में फुलवारी थी,
मां की दुलारी थी,
भैया की गुड़िया रानी थी,
चारों तरफ घर में गूंजती किलकारी थी,
तितली के पंख लगाकर,
उड़ती आसमान की परी थी,
मुझे ना खबर लगी थी,
होश संभाला तो देखा बारात आई थी,
बाजा बजा था पैरों से सर तक मेरा,
लिवास सजा था, नन्हे पैरों में
पायल की जगह गृहस्ती की बेड़िया पड़ी थी,
आईने के पास जाकर देखा तो,
सामने बस एक बेबस नारी खड़ी थी!
एक बेबस नारी खड़ी थी!!
एक बेबस नारी खड़ी थी!!!