लोगों से क्या, अब खुद से अंजान रह जाते हैं शीशे में भी हम, नज़र नहीं आते हैं|| लोगों से क्या, अब खुद से अंजान रह जाते हैं शीशे में भी हम, नज़र नहीं आते हैं||
रोटी खा उसने भूख को मिटाया है, सुना है चौराहे का प्रेत लौट आया है। रोटी खा उसने भूख को मिटाया है, सुना है चौराहे का प्रेत लौट आया है।