ग़ज़ल
ग़ज़ल
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मैं हर पल सोचता रहता कि तेरे पास से गुजरूं,
मगर हिम्मत नहीं थी,फिर उसी एहसास से गुजरूं।
है गहरा ज़ख्म रह जाता ख्यालों के मिटाने पर,
नहीं चाहता, दुबारे मैं उसी इतिहास से गुजरूं।
गुजर जाती है हर दरिया नज़र के पास से हो कर,
यही किस्मत हमारी है कि लम्बी प्यास से गुजरूं।
दिखाकर सामने मंजिल मुझे राहों ने है रोका,
लगाकर पर ख्यालों के भला आकाश से गुजरूं।
किसी की बेवफाई को भुला देना नहीं मुमकिन,
यही बेहतर है बाँकी जिन्दगी सन्यास से गुजरूं।