ग़ज़ल
ग़ज़ल
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यहाँ जब बिक रहा ईमान, तो कोई दाम दे देंगे,
किसी के हक को छीनेंगे, किसी को काम दे देंगे।
अब तो गुलदान कागज़ के फूलों से सजा कर हम,
बिना खुशबू ही आँगन को, चमन का नाम दे देंगे।
हुई गलती अगर मुझसे, तो कोई ग़म नहीं मुझ को,
किसी लाचार के सर आज हम, इलज़ाम दे देंगे।
जगह कोई तो ऐसी हो, जहाँ इन्सानियत बसती।
चलो 'बुन्नू' उसी दर पे, सुनहरी शाम दे देंगे।