एक दिन वो होता है
एक दिन वो होता है
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धैर्य चुक जाता है
एक दिन
नदियों का
उफन पड़ती है
तोड़ कर तट बंध
धरा उगलती है लावा
भीतर की उथल-पुथल को
जब थामते हुए थक जाती है ।
बदल जाती है
हाँ, ना में
असह्य हो जाता है
एक दिन
सर झुका कर "जी हाँ "कहना
नीलकंठ कर उठते ताण्डव
एक दिन
जब ज़हर उगलने लगते हैं
सुर-असुर के भेद
एक दिन वो होता ही है
जिसे चीन्हता नहीं कोई
पर होने की वजह
बनता रहता है धीरे-धीरे।