एक दबी सी चिंगारी
एक दबी सी चिंगारी
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एक दबी सी चिंगारी,
क्यों मेरे मन में पलती है।
सदैव ही इतिहास में,
क्यूँ कर बेटियां ही जलती हैं।
वो पुरुष जो पैदा हुआ
नारी की कोख से,
जिसे उँगली पकड़ चलाया,
वह कह जाता इस झोंक में,
नहीं किया कुछ
माँ, बेटी, बीवी ने
उसके लिए
वह था सक्षम हर राह चलने
सब कर गुजरने के लिए,
यह सुन उस चिंगारी,
को हवा मिलती है।
है जिसे घर नारी सम्मान
वहां हर मुश्किल टलती है।
पर ये नादान पुरुष
न उसकी महत्ता समझता है।
उस नारी को कुचलता,
और छलता है।
इस दबी चिंगारी से,
तुझे आग जलाना होगा,
पुराने इतिहास को बदल,
नया इतिहास बनाना होगा।।
