दिल से (मुक्त काव्य)
दिल से (मुक्त काव्य)
मुझ लिखना है
बहुत कुछ लिखना है
इतना भावनाओं का गुबार है
मेरे मन में
कि अब तो रिसने लगा है।
दोस्त मेरे पास है नहीं
यानि सच्चा दोस्त
जो मुझे समझे
जिसे देखते ही मन
खाली होने को करे,
तो सोचा क्यों ना
कागज़ों से दोस्ती की जाए
भावनाओं को इसी पे उड़ेला जाए॥
बस इसी धुन में आजकल
मैं बहुत लिखने लगी हूँ
कागज़ों से
मेरी पक्की दोस्ती हो गई है
मैं भी
हल्कापन महसूस करने लगी हूँ।
किसी को मैं अपनी बात
कहना चाहूँ
वो सुनने से पहले
समझाना शुरू कर देता है
समझना मैं चाहती नहीं
मैं सिर्फ अपनी बताना चाहती हूँ
मैं सिर्फ खुद को सुनाना चाहती हूँ।
ऐसा आजकल शायद ही
कोई मिले
जो सिर्फ और सिर्फ
मुझे सुने
इसी से कागज़ से बेहतर
कौन हो सकता है।
उसी पे मैं अपना मन
खोल कर रख देती हूँ।
दिल की दिल को दिल से
सुना लेती हूँ॥