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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

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दीये की तरह नहीं मरना मुझे

दीये की तरह नहीं मरना मुझे

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अंधेरों से जंग करे उस दीये कि तरह

मुझे जंग करना अच्छा नहीं लगता, 

यह काम तो उस दीये का है 

जो खूब अंधेरों से जंग करता है, 

और......., 

सुबह तक अपना दम ही तोड़ देता है, 

मेरी जंग तो उन उजालों से शुरू होती है, 

यह मेरे मौत की जंग नहीं 

यह तो मेरे अपने आप से अपने अस्तित्व की जंग है, 

जो दिनभर के अपने कर्मयुद्ध के बाद 

अपना मनन-चिंतन अपने मानसिकता के लिए है, 

कौन लड़ता है रात के अंधेरों से ? 

भला कोई क्या लड़ पाएगा अंधेरों से ? 

सूर्य भी तो उजालों से ही लड़ता है 

रात आते ही तो छुप जाता है, 

मूर्ख है मानव भी.....! 

जो कहते है सूर्य अंधेरों से लड़ता है, 

मैंने कभी उसे रात के अंधेरे से लड़ता नहीं देखा है, 

वो भी अपना अस्तित्व बचाना जनता है,

 मेरा अपना मनन-चिंतन मेरा अपना है, 

मुझे भी सूर्य की तरह जंग लड़नी है, 

मुझे उस दीये की तरह नहीं मरना है !!     


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