चलन से बाहर
चलन से बाहर
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उनके पास नहीं थे उतने रंग
जितने में ख़ुश होते ख़रीदार
जितने में सज सकते उनके पूजा घर
जितने में कहा जाता उन्हें आधुनिक
नहीं थे उतने रूप
जितने में लग पातीं आकर्षक मूर्तियाँ
जितने में ख़रीद लेते एक ही बार में उन्हें देखने वाले हाथ
जितने में देव-देवियाँ सादा न रह जाते
ज़माने के नऐ चलन में
ढलने में असफ़ल
वे नहीं समा सके गाहकों की नज़र में
सो नहीं बिके
इस तरह
फिर इस बार
हाथ नहीं लग सका भोग
देव गढ़ने वाले हाथों के
मशाल
