छुट्टियों के दिन
छुट्टियों के दिन
परीक्षा खत्म होते ही छुट्टियां शुरू
बड़ा मजा आता था छुट्टियों में गुरू
गर्मी का मौसम चार चांद लगा देता
घर को ही खेल का मैदान बना देता
अमृत विष आंख मिचौनी खेलते थे
मां बाप की डांट भी भरपूर झेलते थे
चंगा पौ , ताश खेलने में बड़ा मजा आता
इनडोर खेलों में दिन सारा गुजर जाता
गलियों में खेलने का आनंद कुछ और था
धूप में छालों में भी खेलने का वो दौर था
पेड़ पर चढकर निबौरी तोड़ने का आनंद
मिट्टी के सिक्कों से व्यापार करने का आनंद
कविताओं से अंत्याक्षरी खेलने का आनंद
मेले में झूलने व खिलौनों का वो आनंद
नानी के घर जाने का बेसब्री से इंतजार
सब बच्चों का हिलमिल कर रहने वाला प्यार
खरबूजा तरबूज की दीवानगी का आलम
लीची, शहतूत, फालसे, खिरनी का आलम
फलों के राजा आम की सवारी निकलती
कौन बड़ा वाला लेगा इसकी लॉटरी निकलती
कैरी की छाछ और पोदीने के रायते की बहार
अपने सोने की जगह पर पानी छिड़क करते तैयार
छुट्टियों में कुछ नया सीखने को कहा जाता
हर बार कोई न कोई बहाना बना टाला जाता
कब छुट्टियां खत्म हो जाती पता नहीं चलता
आज उन दिनों को महसूस कर आनंद उर में भरता
काश, लौटकर आ जायें वो छुट्टियों के दिन
तसल्ली वाले निठल्ले से फुरसत के वो दिन!