चाँद से रूबरू
चाँद से रूबरू


आज रात चांद से बात हुई,
चांदनी भी साथ मे ही थी।
मैंने पूछा क्या है तुझमे खास,
जो चाँदनी नही छोड़ती तेरा साथ?
तेरे संग ही आती,
तेरे संग ही जाती,
तेरी तरह जग रोशन करती।
क्या है तुझमे ऐसा खास,
जो सभी तुझे पूजते है।
तुझे देख खिल उठते है,
बच्चे हो या बड़े,
सबके मन को तुम प्यारे,
साजन सजनी के प्यारे।
चाँद मुस्कुराया,और चाँदनी फैल गई,
बोला देख यही है हमारा प्यार।
मैं मुस्कुराऊँ, तो खिल जाए चाँदनी,
चाँदनी बिना न मैं चमक पाऊँ।
बैरी भी कहते है लोग मुझे,
फिर भी ना छोड़ती संग,
सो जाते सब तब भी हम होते संग।
मिले है कुछ वरदान मुझे खास,
जो दागित होकर भी पुजा जाता हूँ।
सबको शीतलता भी देता हूँ।
सारी रात जगता हूँ,
तब जाके सबके मन को भाता हूँ।
अंधेरे में मेरी चाँदनी ही साथ देती है,
इसीलिए सबको प्यारी लगती है।
तू भी रह सबसे अच्छे से,
बाँट सब मे प्यार,
फिर तुझे भी मिलेगा सबसे खूब सारा प्यार।
सुन बाते चाँद की दिल मे खुशी हुई,
चाँद चाँदनी की बाते मन मे बस आई।
चाँद को तो यूँही बैरी कह देते है,
असली साथ तो वही निभाते है।
सुनी रात अंजान रास्तों पर भी,
अपना उजाला फ़ैलाते है,
सिख भी इतनी प्यारी दी,
जो जीवन को सरल बनाए।
खास है तू, बैरी नही
हमारे मन मे बसा है तू।