अजय एहसास

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4.0  

अजय एहसास

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बुराई

बुराई

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जो गाकर बेचें अपने गम, कमाई हो ही जाती है

निकलो जैसे ही महफिल से बुराई हो ही जाती है

किसी के कान में है झूठ, कोई वादों का झूठा है

कभी चक्कर में झूठों के, बुराई हो ही जाती है


बनाते हैं सभी रिश्ते, बहुत नजदीक आ करके

हो गर ज्यादा मिठाई तो बुराई हो ही जाती है

ये कैसा दौर है कैसा जुनूं है आज बच्चो में

उनसे छोटी क्लासों में बुराई हो ही जाती है


बिना सोचे बिना समझे किसी से इश्क फरमाना

कराती घर से है बेघर बुराई हो ही जाती है।

हजारों काम कर अच्छेे, तू कर ले नाम दुनिया में

जो चूका एक पग भी तो, बुराई हो ही जाती है।


भले तुम भूखे सो करके, खिलाये अपने बच्चो को

बुढ़ापे मे जो कुछ बोले बुराई हो ही जाती है।

अमीरों का शहर काफी गरीबों से जुदा सा है

बड़ों के बीच में बोले बुराई हो ही जाती है।


जो नौकर है, नहीं अच्छा कभी पहने नही खाये

बदन पर चमका जो मखमल बुराई हो ही जाती है।

जमीरे बेचकर अपनी करो गुमराह दुनिया को

जो निकली मुंह से सच्चाई बुराई हो ही जाती है।


कोई लड़ता है आपस में तो लड़ने दो उसे जमकर

अगर जो बीच में बोले बुराई हो ही जाती है।

अमीरी उनकी ऐसी है खरीदें सैकड़ों हम सा

अगर ईमान ना बेचा बुराई हो ही जाती है।


किसी के पास गर जाओ सुनो उसकी न कुछ बोलो

नही की जो बड़ाई तो बुराई हो ही जाती है।

जमाने की सभी बातें, ज़हन में बस दफन कर लो

बयां जो कर दिये 'एहसास' बुराई हो ही जाती है।।


       


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