बरसात
बरसात

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यूँ तो बस इक मौसम है,
मगर इतना भी आम नहीं ।।
चाहूं कुछ लिखना इस पर भी
मगर इतने खास मेरे शब्द नहीं ।।
इसकी बूंदों की छुअन कुछ पहचानी सी है ,
कहीं ना कहीं इनमें तो तेरा नाम नहीं ।।
लगी हुई है कब से रिमझिम रिमझिम ,
कहीं इनमें तो तेरा पैगाम नहीं ।।
इक मीठी सी खुशबू है इस बारिश में
कहीं ये मिठास तो तेरी नहीं ।।
कुछ भीगी सी कुछ सूखी सी
कहीं ये आंखे तो तेरी नहीं ।।
यूँ तो बस इक मौसम है ,
मगर इतना भी आम नहीं ।।