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बोलने की आज़ादी

बोलने की आज़ादी

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हो सकता है वो मेरी
हत्या कर दें या करवा दें
वो लोग जो मेरे सवालों से डरते हैं
वो लोग जिन्हें मेरे विचार तेज़ाब की तरह लगते हैं
वो लोग जिन्हें मेरे हंसने से भी गुरेज़ है
उन्हें जिन्हें लगता है उनके समाज और घर के लिए
असीमा ज़हर है
जो फ़ैल रहा है धीरे धीरे
उनके घरों में
उनकी बहन, बेटी और बीवी में
क्योंकि अब वो भी असीमा की बोली बोलने लगी हैं
करने लगी हैं सवाल
पूछने लगी हैं - 'क्यों'?
सवाल बहुत डराते हैं उनको
बस उनकी सुनो और कोई सवाल मत करो
वे फासिस्ट हैं
इन्हें तर्क करने वाले दिमाग आततायी लगते हैं.
पागल और मनोरोगी समझते हैं
वो लोग जो फ़िर से अँधेरे ज़माने में धकेल देना चाहते हैं मुझे
और दबा देना चाहते हैं मेरी आवाज़
माफ़ करना किसी भी आतंक से मुझे डर नहीं लगता
और यही बात उन्हें डराती है कि असीमा डरती क्यों नहीं ?

दुनिया के बड़े बड़े तानाशाह मिट गए सच के आगे
वो अपनी ताक़त का डंका भले चाहे जितना पीटें
उन्हें पता है अपनी कमज़ोरियाँ 
और डरे हुए हैं इस नाचीज़ से
उन्हें मेरी बेख़ौफ़ आँखों से डर लगता है
हाँ, डरा हुआ रहता है हर तानाशाह
बहुत कमज़ोर होता है.
इन्हें डाक्टर की दवाइयां और मनोवैज्ञानिक थेरेपी भी मदद नहीं कर पाती
मत होना आतंकित और मत रोना मेरे मरने के बाद
मैं कहीं नहीं जाऊँगी
मैं रहूंगी इसी धरती पर इन्हीं हवाओं में
और हर उस शख्स के दिलों में जो ज़ुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठाते रहेंगे
'यह जान तो आनी जानी है इस जान की तो कोई बात नहीं'
सवाल करना मत बंद करना
बोलना जो तुम्हारा मन कहे
फैज़ को याद रखना 'बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे'


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