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बंद होठ

बंद होठ

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क्या कोई खबर आई उनके बंद होठों से,
चाय के प्याले ठन्डे हो रहे हैं ,
पास पड़ी चिप्स भी खत्म हो गयी हैं ,
और धीरे- धीरे मेरी बाते भी खत्म हो रही हैं ,
इस नशीले धुँए से मन भी धुंधला गया हैं,
कुछ तो सुनने को मन कर रहा हैं ,
ऐ दोस्त ,
क्या कोई खबर आई उनके बंद होठो से |
दिल्ली की वो सड़के भी रुकी सी लगती हैं,
जिनमे उनके संग यादें जुडी सी लगती हैं ,
ये हवा भी उलटी बहती सी लगती हैं ,
और सारी सुन्दरता तेरी जैसी लगती हैं ,
ऐ दोस्त,
क्या कोई खबर आई उनके बंद होठो से |
निहारने को जब भी चलता हूँ ,
तुझे, आज भी सब में पाता हूँ ,
जब भी तेरा पता लेकर जाता हूँ ,
किसी और को वहाँ पर पाता हूँ ,
ऐ दोस्त ,

क्या कोई खबर आई उनके बंद होठो से |

 


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