बिटिया
बिटिया
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गूंजी जब किलकारी उसके आने की
सबने जश्न मनाया था।
नन्हे कदम उसके परतें ही
महक उठा था घर आंगन सारा।
भर आई पापा की आंखें खुशी से
सुन मीठी आवाज नन्ही परी की।
मां जीने लगी अपना बचपन
देख उसकी शरारतें।
छोटी छोटी खुशियों पे उसके
जान निछावर थी पापा की।
आए जो आंखों में उसके आंसू,
बेचैन हो जाता था घर सारा।
पर, बीतते वक्त और बढ़ती उम्र के साथ
घर की रौनक आँखों में अब चुभने लगी।
ओझल न करते थे जिससे एक पल नजरों से
ख्वाब उसकी बिदाई के संजोने लगे।
पापा की गुड़िया बनी अब जिम्मेदारी,
मां की बिटिया हुए पराई।
क्यूं ये दौर हर लड़की के जीवन में आता है?
क्यूं अपना ही घर पराया हो जाता हैं?