भाव
भाव
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सूरज न सही दीया भी बहुत है रोशनी के लिए
आभास सूरज का होगा।
सागर न सही बूँद ही बहुत है
पानी के लिए
गागर में समाहित सागर होगा।
पर्वत न सही टीले ही बहुत हैं
चढ़ाइयों के लिये
अन्दाज पर्वतों का होगा।
जोड़ की चार लाइनें ही बहुत हैं
कविता साहित्य के लिये
प्रस्तुति का भाव महाकाव्य सा होगा।
