बेटियाँ होती परायी
बेटियाँ होती परायी
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जन्म लिया जिस कोख से,
बचपन बीता जिस आंगन में।
समझा नहीं वहां भी अपना
पैदा होती ही रही परायी।।
बचपन गुजरा, आयी जवानी।
अब इस घर से हुई रवानी।।
नया घर मिला हुआ कुछ सत्कार।
फिर भी नहीं मिला वो सच्चा प्यार।।
दिवस बीते महीनों में हुए गोद भराई।
दिया जन्म कुल दीपक को फिर भी
रही परायी।।
नन्हे बालक को युवा बनाया
उस के पढ़ना लिखना सिखाया।
मैने अपना फर्ज़ निभाया सिखाये संस्कार ,
फिर भी जगह नहीं बना पाई दिलों में।
अब आयी मेरी जग से विदाई।
इस जन्म में रही बस बन कर परायी।।
