बेटीयाँ...
बेटीयाँ...
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बाबुल के घर से चली जाती है....
ये बेटियां बहुत सताती हैं...
फिर कहां लौट करके आती है..
ये बेटियां बहुत सताती है
लोरियां गा के मां सुलाती थी...
रोने लगती तो वो हंसाती थीं......
उंगलियां थाम कर चली जब भी...
रूठ जाती कभी मनाती थी...
दिल में आती है मुस्करातीं है...
ये बेटियां बहुत सताती है.....
सिर्फ खाली मकान दिखता है...
और उजाला यहां सिसकता है...
देख कर आने वाले कहते हैं...
वही मासूम जहां दिखता है....
याद उनकी बहुत रुलाती हैं...
ये बेटियां बहुत सताती है...
बाबुल के घर से चली जाती हैं..
ये बेटियां बहुत सताती हैं।
