STORYMIRROR

Kamal rathore

Others

2  

Kamal rathore

Others

बेड़ियाँ

बेड़ियाँ

1 min
135

नारी का सोलह श्रृंगार अद्भुत है

हर नारी अधूरी है 

इसके बिना मगर 

कब ये बेड़ियाँ बन जाये 

पता नहीं चलता 

कब हाथ की चूड़ियाँ 

पैर की पाजेब 

उंगली की बिछिया

बेड़ियाँ बन जाती है 

कब चार दीवारी में 

सिमट जाती है

दीवारों के कान होने के

बावजूद भी 

कानों कान खबर नहीं होती



Rate this content
Log in