बेड़ियाँ
बेड़ियाँ
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नारी का सोलह श्रृंगार अद्भुत है
हर नारी अधूरी है
इसके बिना मगर
कब ये बेड़ियाँ बन जाये
पता नहीं चलता
कब हाथ की चूड़ियाँ
पैर की पाजेब
उंगली की बिछिया
बेड़ियाँ बन जाती है
कब चार दीवारी में
सिमट जाती है
दीवारों के कान होने के
बावजूद भी
कानों कान खबर नहीं होती