बेबस बेसहारा बेरोजगार
बेबस बेसहारा बेरोजगार
1 min
26
झर रहा है बाल,
पड़ रही हैं आंखों में झुर्रियाँ,
ना जाने कब होंगी किताब कापियों से दूरियां ,
बचपन बीता ,
लड़कपन बीता ,
फिसल रही है जवानियां,
यार देखे,
प्यार देखे,
बदलते देखे हर रिश्तों की वो कहानियां,
ना जाने कहाँ छूट गई वो आंखों से निंदिया ,
अब तो दिल दहल जाता है ,
देख के मजबूरियां,
आते जाते पेपरों से ,
नहीं बदलती कहानियां ,
एग्जाम पे एग्जाम दिए,
हर एग्जाम को बेहिसाब दिए ,
फिर लीक हुआ एग्जाम,
फिर भी फिर से एग्जाम हुआ ,
एक बार नहीं सौ बार हुआ ,
सिस्टम के आगे
बेबस बेसहारा बेरोजगार हुआ ।
