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ER SIDDHARTH YADAV

Others

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ER SIDDHARTH YADAV

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बेबस बेसहारा बेरोजगार

बेबस बेसहारा बेरोजगार

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झर रहा है बाल, 

पड़ रही हैं आंखों में झुर्रियाँ,


ना जाने कब होंगी किताब कापियों से दूरियां ,


बचपन बीता ,

लड़कपन बीता ,


फिसल रही है जवानियां,


यार देखे, 

प्यार देखे, 

बदलते देखे हर रिश्तों की वो कहानियां,


ना जाने कहाँ छूट गई वो आंखों से निंदिया ,


अब तो दिल दहल जाता है ,

देख के मजबूरियां,


आते जाते पेपरों से ,

नहीं बदलती कहानियां ,


एग्जाम पे एग्जाम दिए, 

हर एग्जाम को बेहिसाब दिए ,


फिर लीक हुआ एग्जाम, 

फिर भी फिर से एग्जाम हुआ ,

एक बार नहीं सौ बार हुआ ,

सिस्टम के आगे 

बेबस बेसहारा बेरोजगार हुआ ।



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