बेबस बचपन है......
बेबस बचपन है......
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बेबस बचपन हैं, तभी आंखे नम है
कोई कर रहा क्यों इनका शोषण है
जाने कितनी गम्भीर मजबूरी है
किताबें पकड़ने की जगह हाथों में मजदूरी है
कैसे मिलेगा इनको बचपन का अधिकार
कौन बढाएगा हाथ, किसका मिलेगा साथ
आंखों में आंसू है परिवार की जिम्मेदारी इनके बाजू है
खा रहे ठोकरें दर बदर, फिर भी समाज में फैले पापी जुल्म ढ़ाने को है प्रखर
कोई देता गाली है, तो कोई मारता थाली है
अगर काम पसन्द न आए, तो बेचारे बचपन को मिलती बदहाली है
हो रहा समाज में कितना जुल्मे सितम है
क्योंकि बेचारा बेबस बचपन है।
'अहसास'
