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Anusha Dixit

Others

5.0  

Anusha Dixit

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बचपन

बचपन

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जब मैं छोटी बच्ची थी,

मेरी बातें कच्ची पक्की थीं।

सपनों की उड़ान थी,

फ़िक्र नहीं थी जमाने की।

फिर एक बार उस

बचपन को जीना चाहूँ,

बेफिक्री में सोना चाहूँ।


चाहूँ की जुगनू पकड़कर

अंधेरों को रौशन करूँ,

चाहूँ की फिर एक बार

तितलियों में रंग भरूँ।

कभी शैतानी करूँ,

कभी नादानी करूँ।


कभी रो रो कर अपनी

ज़िद पूरी करवाऊँ,

कभी माँ की गोद में

आँचल ढक कर मैं सो जाऊँ।

कभी पापा की डाँट से

डरकर पर्दे के पीछे

मैं छुप जाऊँ,

कभी भैया ,दीदी को

पल-पल में चिढ़ाऊँ।

मेरी कल्पनाओं का

आसमान

नीला नहीं गुलाबी हो,

मेरी आँखों में निश्छलता हो

बातों में न चालाकी हो।


मेरे सपनों के घोड़े

सबसे तेज़ दौड़ें,

कभी गिरे कभी रुके

कभी खुद को मोड़े।

कोई लौटा दे मेरे

बचपन के वो सुनहरे दिन,

वो घड़ी वो पलछिन।



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