बचपन के वो दिन
बचपन के वो दिन
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम सभ छोटे बच्चे थे।
खेला करते थें दादाजी के साथ रोज
जब होता नहीं था किसी काम का भोज ।
दीवाली हो होली हो या फिर हो संक्रांत
मां के हाथ से बनी मिठाइयों की तो अलग ही थी बात।
वो सुबह सुबह चिड़ियां का चहकना
शाम को बघिया में फूलो का महकना ।
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम सभ छोटे बच्चे थे ।
याद है ना वो मेले का झूला
और वो तपती गर्मी में बर्फ का गोला।
दादीजी नानीजी की वो कहानी
जिनमे छुपी होती थी सीख सुहानी ।
रहता ना था कभी शाम का ठिकाना
रोज ढूंढा करते थे पढ़ाई से बचने का बहाना।
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम सभ छोटे बच्चे थे ।
पापा का वो ऑफिस से आना
साथ मे अपने चॉकलेट लाना।
बारिश में वो कागज़ की नाव
गर्मी में वो पेड़ को छाव।
सभ याद है नाना तुम्हे
और हो भी क्यों ना क्युकी
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम सभ छोटे बच्चे थे।
जब भी देखते है पुरानी तस्वीरे हम
आंखे तो हो ही जाती है नम।
याद आते है वो सारे नन्हे पल
जब मिल जाता था हर मुश्किल का हल।
वो ज़माना भी बड़ा कमाल था
जब हम जैसे छोटे बच्चो का धमाल था ।
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम सभ छोटे बच्चे थे।।