बचपन का जमाना
बचपन का जमाना
जिया है हमने बचपन को भरपूर मस्ती भरी टोली के साथ।
समय था बचपन का,
बच्चों की मस्ती भरी टोली का,
इशारों इशारों में आज किस को नचाना है।
आज बलि का बकरा किसको बनाना है।
फिर पूरी मस्ती के साथ मौज मनाना है।
कभी-कभी तो हम भी इसका शिकार हो जाते थे।
आपस की मस्ती में कभी हम भी उनके झांसे में आ ही जाते थे।
मगर जो भी कहो समय बहुत प्यारा था।
सब समय से न्यारा यह बचपन का प्यारा साथ था।
क्या खुशमिजाज मस्तीखोर जमाना था।
किसी को भी बलि का बकरा बना कर फिर इतना हंसते
कि हंसते-हंसते आंखों में पानी आ जाता था।
मारदड़ी खेलते हुए आज मारकर किसको लगाना है।
छूपम छूप्पी खेलते हुए किस को फंसाना है।
किससे नाच और भंगड़ा करवाना है।
समय था सुहाना बचपन का जमाना था।
सड़क के रास्ते की जगह दीवार फांदकर के जाना था।
कभी कभी गिरते चोटिल होकर प्यार से दवा लगाकर डांट भी खाना था।
मार भी खाना था।
क्या सुनहरा समय हमारा बचपन का यादगार जमाना था।
बालू रेत में बैठकर मकान बनाते थे।
जिसका सबसे सुंदर बनता उसे बहुत सरहाते थे।
हर त्यौहार छोटी से छोटी मस्ती भी सब मिलकर मनाते थे।
मस्ती अनुशासन में होती थी मगर कभी अनुशासनहीनता होती
तो बहुत डांट खाते थे। प्यारा सा बचपन सपने सा बचपन था।
मस्ती में एक दूसरे से इशारों ही इशारों में बात करना।
आज किस को परेशान करना।
यह हमारा बहुत खास रहता था।
इसमें हमारा साथ भी रहता था।
कभी-कभी हमारा भी शिकार हो जाता था।
आज वे सपने सपने ही रह गए।
क्योंकि हमारे प्रियतम तो इशारों में बात करते ही नहीं।
इतने सीधे साधे हैं कि इशारों की भाषा समझते ही नहीं।
तो इशारों में बात करना भी सब छूट ही गया है।
मगर आज वापस आपकी बातों से इशारों इशारों से
बात करने का बचपन का मंजर याद आ गया है।