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बाल कविताएँ

बाल कविताएँ

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1) चीं चीं चिड़िया


चीं चीं चिड़िया, चीं चीं चिड़िया

उड़ती जाए, उड़ती जाए

नील गगन में।

चीं चीं चिड़िया, चीं चीं चिड़िया

गाती जाए, गाती जाए

नंदनवन में।

चीं चीं चिड़िया, चीं चीं चिड़िया

दाना चुगती, दाना चुगती

घर-आँगन में।

चीं चीं चिड़िया, चीं चीं चिड़िया

सैर को जाए, सैर को जाए

दूर चमन में।


2) मेरे घर की फुलवारी


कितनी सुंदर, कितनी प्यारी

मेरे घर की फुलवारी।

गेंदा और गुलाब यहाँ

ऐसी शोभा और कहाँ।

भौंरे भी मँडराते हैं

फूलों के पास वे जाते हैं।

जूही लगती बहुत ही प्यारी

महके मेरी क्यारी-क्यारी।

तितली आती प्यारी-प्यारी

मेरे घर की फुलवारी।


3) नई सुबह


रोज सवेरे पूरब से

सूरज चाचा आते हैं।

मेरे आँगन में हर दिन

नई रोशनी लाते हैं।

उनके आने से जीवन में

उजियारा भर जाता है।

किरणों की आहट पाकर,

सारा जग जग जाता है।

अंधकार के दानव की

अब तो कोई खैर नहीं।

पंछी हिल-मिल गाते हैं,

उन्हें किसी से बैर नहीं।


सूरज के जगने से पहले

कृषक बंधु जग जाते हैं।

बाँध के पगड़ी खेतों में

जीवन का राग वे गाते हैं।

लिए बैग बच्चे भी निकले

अपनी शालाओं की ओर,

उनके हाथों में ही तो

है भविष्य की डोर।

सब निकले अपने घर से

नई सुबह का स्वागत करने।

आशाओं के पंख लगाकर,

जगती में खुशियाँ भरने।


4) बारिश


उमड़ घुमड़ कर बादल आए,

पूरे आसमान में छाए।

तड़क-तड़ककर बिजली चमकी,

आग की रेखा सी ये झलकी,

हवा बह चली जोरों की,

भगदड़ मची है ढोरों की।

सब हैं भागे घरों की ओर,

खिड़की दरवाजों का शोर।

फिर बूँदें आईं गोली सी,

हिल-मिलकर हमजोली सी।

टप-टप गिरती रहीं मगन,

डोल रहा है सबका मन।

मिट्टी से खुशबू निकली,

सौंध हवा में घुली-मिली।

डाल-डाल और पात-पात,

खुश कलियों फूलों की जमात।


5) नियम


जग में चाहो नाम,

नियम से करना काम।

नियम से उगता सूरज,

शाम को फिर ढलता है।

सरदी, गरमी बरसातों को,

नियम से क्रम चलता है।

नियम से जगना-सोना,

प्यारे तुम अपना लो।

पढ़ने-लिखने, खेल-कूद का,

एक नियम बना लो।

नियम को जो ना माने,

समझो बिगड़ा उसका काम।

कैसे हो सकता है फिर

जग में उसका नाम।


6) गौरव गान


जन्म लिया है जिस भू पर,

आओ करें उसका गुणगान

मातृभूमि को नमन करें

गाएँ इसके गौरव गान।

भूमि नहीं मात्र है यह

वीर शहीदों की जननी है,

शिवा और प्रताप के तप की

पावन भूमि यही अपनी है।

अमृत वाणी सुना गए हैं

नानक, बुद्ध, कबीर,

कर्मपथ पर डटे रहो तुम

जैसे रहे राम रणधीर।


वेद, पुराण, उपनिषद, गीता

ज्ञान समुद्र भरा है इनमें,

ऋषि-मुनियों का आत्मबोध

इस धरती के कण-कण में।

कर्म प्रतिष्ठा कृष्ण कर गए

अपनी मही यही है,

जन-जन की उद्धारक गंगा

अविरल बहती सदा यहीं है।

रज कण को माथे पर मलकर

सभी बढ़ाएँ इसका मान,

मातृभूमि को नमन करें

गाएँ इसके गौरव गान।


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