बाबू जी।
बाबू जी।
बच्चों के संग बच्चा बनकर, सदा हँसाते बाबू जी।
बच्चों की इच्छाओं को हैं, पूरे करते बाबू जी।
जीवन जीतें हैं कैसे , जब हम दुनिया में आतें है।
हर मुश्किल में बनकर साया, संग हैं चलते बाबू जी।
मेरे नन्हे हाथों को, उंगली का सहारा देते थे।
आज खड़े हम बिना सहारे, केवल उस स्पर्श के बल पर।
खुद पारस बनकर थे हमको, स्वर्ण बनाते बाबू जी ।
वो खुशियों के लिए हमारे, अपना सुख थे तज देते।
मेहनत करके सुबह शाम थे, हमें पढ़ाते बाबू जी ।
कभी जो चलते गिर जाते, हमको उत्साहित करते थे।
श्रम, विश्वास, संस्कारों का, बीज रोपते बाबू जी ।
वो एहसास सुखद था उसके जैसा था न कोई भी ।
प्रेम अश्रु आँखों में आता, जब गले लगाते बाबू जी ।