अंहकार
अंहकार
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अहंकार के मद में लोग इस तरह चूर हो जाया करते हैं
करते थे कल तक जो सलाम हमें झुक-झुक कर,
आज वो हमें पहचानने से ही इनकार किया करते है।।
मिट जाया करती है एक दिन वो हस्तियां,
अहंकार में जो इंसानियत भूल जाया करती हैं ।
वो खुद खो जाते हैं एक दिन किसी गुमनाम अंधेरे में,
अहंकार में चूर होकर किसी दीपक की लो बुझाया करते हैं
यह कल भी सच था और आज भी जनाब
उजड़ाना ही लिखा है उस बस्ती की तकदीर में,
जो किसी अहंकार के साए में बस जाया करती हैं।
मैं मैं करने वालो ये दुनिया न तेरी हुई न मेरी ,
एक दिन यहाँ से सब रुखसत कर दिये जाते हैं ।।