अबोध मन
अबोध मन
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कक्षा चार की वो बातें
जब जब गहराती हैं
अबोधता मेरे ज्ञान पर
विजय पताका फहराती है
ये देखो राजनीति, ये देखो साहित्य
क्या क्या मैंने बोझ पाल के रखें हैं
दुनिया की वाह वाह की ख़ातिर
ज़बानी याद कर रखें है
मैं बेईमान मैं नकली सा
मैं पाश की कविता पढ़ता हूँ
मैं लोभी हूँ मैं दो मुख वाला
न्याय की बातें करता हूँ
ना जाने क्यों इस दुनिया को
मैं गीतकार सा भाता हूँ
पर तुमसे बातें करते ही
मैं मैं जैसा हो जाता हूँ
ना जाने क्यों तुम मेरे
अल्हड़पन में सुख पाती हो
ना जाने क्यों तुम मुझसे बस
बातें किये जाती हो