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आशियाना

आशियाना

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कभी  कभार ख्वाब सा तो ,
कभी कभार हक़ीक़त  सा
लगता आशियाना  हमारा ।
कभी कभार जंजीरों से जकड़ा तो
कभी कभार आजादी सा
लगता आशियाना हमारा।
कभी कभार पास तो,
कभी कभार दूर
लगता आशियाना हमारा

कभी कभार सांसें तो,
कभी कभार बंदिश

लगता आशियाना हमारा।


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