आँचल
आँचल
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तेरी तरह कोई समझता नहीं माँ,
सर पर हाथ कोई रखता नहीं माँ;
मन की बात मन मे ही रह जाती है,
आँखों को कोई पढता नही माँ;
अपने आँचल की छाँव तूने मेरी गलतियो को भी छिपाया माँ,
इस चिलचिलाती धूप ने मेरी खुबियो को भी जलाया माँ;
जब भी छोटी कोशिश की तूने हाथ बढाया माँ,
बेगानों की भीङ मे तू बनी मेरा सहारा माँ;
ढुँढु तेरा आँचल फिर से दूर करने को अंधेरा माँ,
आ, फिर से फेर सर पर हाथ मेरे, कर दे पूरी सारी मुरादे माँ।।
