आम होना भी कितना ख़ास है
आम होना भी कितना ख़ास है
1 min
315
भीड़ में भी अंजान है ,
ये भीड़ ही तो किसी ख़ास की पहचान है
तो फिर आप कितने दयावान है
सच मानिए आम होना भी बहुत ख़ास है .....
ना चिंता कुछ खोने की , ना उम्मीद असंभव होने की
ना फिक्र इधर उधर की , ना तराशी सदर की
ये बेशकीमती आजाद है आम होना भी कितना ख़ास है .....
रौशन है हर ख़ास की रोशनी इसी आम से
ऐसे जुगनू होना भी बड़ी बात है तो
चमकाइए इस जहां को और
देखिए आम होना भी कितना ख़ास है .....
पूछिए किसी दिलो के ख़ास से कि
उसके सबसे करीब क्या है
जवाब उसका यही होगा कि
जिसने उसे ख़ास बनाया वहीं आप है
तो महसूस कीजिए आम होना कितना ख़ास है .....
आम से ख़ास बनता तो हजारों को देखा है
लेकिन जो ख़ास बनके भी आम रहे
वही तो सबसे ख़ास है तो
सोचिए आम होना भी कितना ख़ास है .....