Medico by profession, Poet by choice
फसाहत का बयां करता नहीं कोई, रहें हैं अब कहां भला आशिकाने उर्दू फसाहत का बयां करता नहीं कोई, रहें हैं अब कहां भला आशिकाने उर्दू
ज़्यादा बड़ा तो नहीं मगर बहुत अच्छा है गांव। ज़्यादा बड़ा तो नहीं मगर बहुत अच्छा है गांव।
चलो आज फिर एक उन्वान लिखते हैं, तुम जुर्म करो और हम तुम्हारी शान लिखते हैं। चलो आज फिर एक उन्वान लिखते हैं, तुम जुर्म करो और हम तुम्हारी शान लिखते हैं।
छोटी छोटी वादियों में, नन्ही सी प्यारी गलियों में, कस्बों के उन मकानों में.... छोटी छोटी वादियों में, नन्ही सी प्यारी गलियों में, कस्बों के उन मकानों में...