शौकिया लेखन.राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन
तुम्हें तो इस क़दर बेरहम नहीं होना चाहिए। तुम्हें तो इस क़दर बेरहम नहीं होना चाहिए।
जब दादी-नानी तुम्हें माथे लगाया करती थीं। जब दादी-नानी तुम्हें माथे लगाया करती थीं।
बिना तराशे आकार लेता है इक जंगल बिल्कुल ही जंगली जंगल बिना तराशे आकार लेता है इक जंगल बिल्कुल ही जंगली जंगल