I'm Md Faizan Raza and I love to read StoryMirror contents.
मुस्तक़िल बोलता ही रहता था मैं, खामोशी ले बैठा हूं। मुस्तक़िल बोलता ही रहता था मैं, खामोशी ले बैठा हूं।
फिर तुम्हारी आंखों से मुलाकात कर बैठा। फिर तुम्हारी आंखों से मुलाकात कर बैठा।
जो जुबाँ की बात आए तो हम बेकुसूर नजर आते हैं। जो जुबाँ की बात आए तो हम बेकुसूर नजर आते हैं।
माना के उसके जज्बातों से वाक़िफ़ हूं मैं, और एकतरफा है सफर मेरा। माना के उसके जज्बातों से वाक़िफ़ हूं मैं, और एकतरफा है सफर मेरा।
तकलीफ में मैं होता, पर आंखें नम उसकी भी होती हैं। तकलीफ में मैं होता, पर आंखें नम उसकी भी होती हैं।
मेरा सारा दिन गुजर जाता है, खुद को समेटने में। मेरा सारा दिन गुजर जाता है, खुद को समेटने में।